मुर्गी और कनखजूरा दोस्त थे। लेकिन वे एक दूसरे से हमेशा मुकाबला करते थे। एक दिन उन्होंने यह देखने के लिए फुटबॉल खेलने का फैसला लिया कि कौन अच्छा खिलाड़ी है।
वे फुटबॉल के मैदान में गए और उन्होंने अपना खेल शुरू किया। मुर्गी तेज़ थी, लेकिन कनखजूरा उससे भी तेज़ था। मुर्गी ने जितनी तेज़ी से फुटबॉल को लात मारी, कनखजूरे ने उससे भी तेज़ी से फुटबॉल को लात मारी। मुर्गी को गुस्सा आने लगा।
कनखजूरे ने बॉल को मारा और गोल हो गया। कनखजूरा बॉल को घुमाते हुए ले गया और गोल कर दिया। कनखजूरे ने सिर से बॉल को मारकर गोल किया। कनखजूरे ने कुल पाँच गोल किए।
मुर्गी बहुत गुस्सा हो गई क्योंकि वह हार गई थी। उसको हारना बिलकुल पसंद नहीं था। कनखजूरे ने हँसना शुरू कर दिया क्योंकि उसकी दोस्त बेवजह गुस्सा कर रही थी।
वापिस घर लौटते समय मुर्गी को रास्ते में कनखजूरे की माँ मिलीं। उन्होंने पूछा “क्या तुमने मेरे बच्चे को देखा?” मुर्गी ने कुछ नहीं कहा। माँ बहुत परेशान थीं।
तब कनखजूरे की माँ ने एक हल्की सी आवाज़ सुनी। “माँ मेरी मदद करो” आवाज़ आई। कनखजूरे की माँ ने आस पास देखा और ध्यान से सुना। वह आवाज़ मुर्गी के अंदर से आ रही थी।
कनखजूरे की माँ चिल्लायी “मेरे बच्चे अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग करो”। कनखजूरे में से बहुत गंदी बदबू आती है और उनका स्वाद बहुत ख़राब होता है। मुर्गी बीमार महसूस करने लगी।